मंगलवार, 17 मार्च 2015

सेना मैदान में और सेनापति साधना में



कांग्रेस के दिल्ली चुनाव में बुरी तरह से पराजय के बाद अचानक ही गुम हो जाने वाले राहुल गांधी अब तक अवतरित नहीं हुए हैं | दिसंबर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली बुरी हार के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी के इस उपाध्यक्ष ने नई नवेली आम आदमी पार्टी से सीख लेने की बात कही थी पर सीखने का सिलसिला शुरू हो पाता उससे पहले ही इस नौसिखिए नेता की भिडंत गुजरात मॉडल के आर्किटेक्चर नरेन्द्र मोदी से हो गयी फिर तो राजनीतिक बदलाव की ऐसी बयार चली कि युवराज कुरते की बाँही ही संभालते रह गए | रही सही कसर 4  राज्यों में कांग्रेस की करारी हार ने पूरी कर जिसमे से दिल्ली में तो कांग्रेस को अब तक के सबसे बुरे दिन से रूबरू होना पडा और यहाँ खाता भी नहीं खुल सका | यही कारण भी है कि राहुल को एकांतवास का सहारा लेना पड़ा | इस बीच तमाम राजनीतिक उठापटक हुई पर कांग्रेस के खेवैया की पतवार कहाँ अंटकी है कोइ नहीं जान पाया | शायद राजनीति ही एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ बिन दुल्हे की बारात भी अपने प्रयोजन में सफल हो सकती है | राजस्थान में लाठियां बरस रही थी सचिन पायलट पर लेकिन आवाज आ रही थी राहुल गांधी जिंदाबाद | अब तो ऐसा लगने लगा है कि नारों के माध्यम से कांग्रेस कार्यकर्ता अपने नेता को आवाज दे रहे हैं कि अब भी तो चले आओ | कोयला घोटाले पर सम्मन का सामना कर रहे मनमोहन सिंह आज अपने राजनीतिक करियर के एक बुरे दौर से गुजर रहे हैं लेकिन वह राहुल गांधी उनके आस पास भी नजर नहीं आ रहे जिनके लिए मनमोहन सिंह ने अपनी पीएम की कुर्सी छोड़ने तक की पेशकश कर दी थी | अगर ऐसा हो गया होता मनमोहन की कुर्सी पर राहुल विराजमान हो गए होते तो आज शायद दिल्ली पुलिस को राहुल के बाल और चेहरे का रंग जानने के लिए हाथ पैर नहीं चलाना पड़ता | ऐसा शायद पहली बार हो रहा है कि आदमी का पता ही नहीं है और उसके चाहने वाले उसकी जासूसी का आरोप लगा रहे हैं | कांग्रेस के अंदरखाने से छिटपुट खबर यह आ रही है राहुल गांधी थाईलैंड में विपसना साधना कर रहे हैं | कैमरे के सामने गरीब की झोपडी में खाना खा कर खुद को गरीबो का मसीहा दिखाने वाले इस युवराज को अब तंद्रा तोड़ भी देनी चाहिए क्योंकि इनका कुनबा जिस तरह से बिना किसी मुद्दे के संसद की कार्यवाही में बाधा पहुंचा रहा है उससे उस गरीब के पसीने की कमाई से मिला टैक्स ही पानी की तरह बह रहा है | अब तो आस पास ना ही कोइ चुनाव है और ना ही  कविराज का खौफ क्योंकि अमेठी भी इनकी हो चुकी है | हालाँकि इनके हालिया हालत पर ‘मीर  दर्द’ का यह शेर ही सटीक बैठेगा कि,
‘सैर कर दुनिया की गाफ़िल जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ |’       

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