शनिवार, 21 मार्च 2015

धर्म की व्यथा कथा



मैं धर्म हूँ, जी हाँ मैं धर्म हूँ, हाँ हाँ मैं धर्म ही हूँ, आपको क्यों लगता है मैं धर्म नहीं हूँ, अच्छा अब समझा अब मैं पहले जैसा जो नहीं रहा. पर क्या करूँ यह मेरी गलती तो है नहीं, मुझे ऐसा बनाया भी तो आपने ही है. आपने ही तो जबरदस्ती मेरी आँखों पर चस्मा चढ़ा दिया और समाज की हर अनहोनी को दिखाने के लिए मुझ पर लादे गए उस चश्मे का ही इस्तेमाल किया. मैं भी तो थक चुका हूँ यह सुन सुन कर, ‘धर्म के चश्मे से’. यह करमजला चस्मा फुट भी क्यों नहीं जाता. अरे पर फूटे भी तो कैसे, इसी की आड़ में तो बड़े-बड़े धार्मिक ठेकेदारों का व्यापार फल फुल रहा है. माफ़ कीजिएगा मेरी कोइ गलती नहीं है इन व्यापारियों को बड़ा बनाने में. आपको ही तो जल्दी में कृपा चाहिए, अरे जब भगवान् रूप में माँ-बाप आपके घर में हैं तो फिर किसी बापू की जरुरत क्यों पड़ी आपको. मैं बताता हूँ यह उसी चश्मे के कारण है जिसके चढ़ जाने पर आपको कुछ नहीं दिखता. काश ऐसा हो पाता कि मै टूटी झोपड़ी में ठिठुर रहे लोगो के सामने निर्वात में खड़े उस बड़े गुंबज वाली इमारत पर लगे लाउडस्पीकर से कभी आपको सही राह दिखला पाता. पर अफ़सोस उस निर्जीव लाउडस्पीकर को भी आपने मेरे चश्मे में ढाल कर लड़ाई का हथियार बना लिया. लड़ाई और हथियार से याद आया, यही दो शब्द है न प्रचलन में जिनके कारण लोग मेरा नाम भी जान पाते हैं आज कल. धर्म के नाम पर लड़ाई, धर्म के नाम पर हथियार उठा लिया, बला बला, खुद के बारे में कितना बताऊँ मैं, आप तो अखबार पढ़ते ही होंगे. हाँ ‘दंगा’ इसका नाम ना लूँ तो नाईंसाफी हो जाएगी. इसी ने तो आज कल मुझे और भी मशहूर कर रखा है. अयोध्या, भागलपुर, मुजफ्फरनगर, त्रिलोकपुरी और भी पता नहीं कितने पुर और पुरी हैं जिनके कारण मैं जाना गया. मुझे जानने का कारण जब आप जान ही रहे हैं तो फिर इसे भी जान लीजिए जिसे ‘लव जेहाद’’ का नाम दिया गया. एक बात मैं बाताऊं जब मेरा जन्म हुआ तो यही मेरा काम था प्यार बांटना, मुहल्लों में मुहब्बात का पैग़ाम फैलाना. पर पता नहीं किस गलती की सजा मुझे भुगतनी पड़ रही हैं कि उसी प्यार भरे शब्दों से उपजी मुहब्बत को मेरा नाम लेकर मौत के घाट उतारा जा रहा है. यकीन मानिए इसमें मेरा कोइ हाथ नहीं है. अगर मुहब्बत को नफरत में बदलने वाले इन कुकर्मो में मेरा हाथ होता तो मेरे ही घर के एक बड़े ज्ञानी मुहम्मद को मानने वाले हुसैन ओबामा और मेरे ही एक परिजन ईसा को मानने वाली अन्न दुन्हम की मुहब्बत से बराक ओबामा जैसा बेटा पैदा नहीं होता. ऐसे उदाहरण आपके आस-पास भी बहुत से हैं दिख जाएंगे. मुझे तो घृणा हो गयी है मेरी वर्तमान हालत से, काश मेरी भी कोई ‘घर वापसी’ करा देता. मेरा कल आपके हाथो में है मेरा कोइ परिजन मेरे किसी दुसरे परिजन की राह में रोड़े पैदा करने की सीख नहीं देता. आपसे मेरा निवेदन है जल्द से जल्द इस ‘धर्म के चश्मे को उतारें, मेरी आँखे पथरा गयी है उस दिन के इन्तजार में जब सभी लोग एक सुर में यह बात कहेंगे कि,  
‘’हाथो में गीता रखेंगे सीने पर कुरआन रखेंगे,
मेल बढाए जो आपस में वही धर्म ईमान रखेंगे,
शंख बजे भाईचारे का अमन की एक अजान रखेंगे,
काबा और काशी भी होगा पहले हिन्दुस्तान रखेंगे.’’

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