सोमवार, 22 जून 2015

श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके उतराधिकारी

‘सिंह-गर्जना से जिसने था द्रोही दल को ललकारा।
‘देश अखण्ड रहे मेरा’ था एक यही जिसका नारा॥
नन्दन वन पर आँख लगी जब देखी उन हत्यारों की।
ज्वाला बन कर भड़क उठी तब आग दबे अंगारों की॥‘

आज 'श्यामा प्रसाद मुखर्जी' की पुण्यतिथि है। इस महान शक्सियत के व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करती महावीर प्रसाद ‘मधुप’ की ‘इन पंक्तियों के माध्यम से इस पुरोधा को शत नमन। इनके सुकर्म शब्दों में तो हमेशा ही जीवित रहेंगे लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में इनके विचारों की सार्थकता इस बात में है कि इनके उतराधिकारी इनकी विरासत के प्रति कितने संजीदा हैं। यह तो दिख ही रहा है कि ‘एक विधान, एक प्रधान, एक निशान’ के मुद्दे पर लड़ते हुए बलिदान दे देने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उतराधिकारी उनकी इस विचारधारा को किस तरह से आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन आज के समय में जब कि श्रद्धा दिखावे तक सिमट कर रह गई है, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रति ‘भाजपा’ का दिखावटी प्रेम भी नहीं दिख रहा है। अपने हर एक कदम को विज्ञापनों के जरिए जगजाहिर करने वाली वर्तमान सरकार ने राष्ट्रवाद के इस आधार स्तम्भ के लिए किसी अखबार में विज्ञापन के जरिए ही सही श्रधांजलि के दो शब्द कहना उचित नहीं समझा। भले ही इनके उतराधिकारी सियासत के चक्रव्यूह में उलझकर इनकी विरासत को बिसार दें लेकिन इस बुलंद शक्सियत का गुणगान तो युगों-युगों तक ‘मधुप’ जी की ये पंक्तियाँ करती रहेंगी : 

धन्य-धन्य श्यामा प्रसाद! हे अखण्डता के अभिलाषी।
युग-युग तक यश-गान तुम्हारा गायेंगे भारतवासी॥
दो हमको वह शक्ति, देश का सुयश धरा पर व्याप्त करें।
चलें तुम्हारे पद चिह्नों पर सदा सफलता प्राप्त करें॥


विरासत और अतीत के हर एक निशान को सहेजने की वकालत करने वाले प्रधानमंत्री जी की जानकारी में क्या यह बात नहीं है कि कश्मीर में जिस झोपड़ी में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नजरबन्द किया गया था आज उसके निशान तक मिटा दिए गए हैं। शायद यह प्रश्न वाजिब ही नहीं है क्योंकि दूसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर में भी सरकार में शामिल भाजपा जब अपने इस अभिभावक की रहस्यमय मौत से पर्दा हटाने के प्रति चिंतित नहीं है तो फिर इनसे जुड़े निशानों को संग्रहित करने की बात कौन सोचेगा ! जब भी कश्मीर पर बात होती है, भाजपाई चीख-चीख कर कहते हैं, ‘जहाँ मुखर्जी शहीद हुए हैं वह कश्मीर हमारा है’, लेकिन भारत के सरताज में वास्तविक भारतीयता देखने का इस शेरे बंगाल का सपना सियासत की गलियों में भटक सा गया है। किसी से सच ही कहा है, 

''ताक पर रख दीजिए अब आप भी अपना जमीर।
यह सियासत है, सियासत में बुरा कुछ भी नहीं।''

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