रविवार, 23 अगस्त 2015

गांधी को महात्मा बनाने वाला ‘चम्पारण का अकेला मर्द’


आज से लगभग 2 साल पहले जब मेरा कॉलेज में पहला दिन था और सभी बच्चे अलग अलग अंदाज में अपना परिचय दे रहे थे, मैंने अपना पहचान उनकी पहचान के जरिए देने का सोचा जिनसे मेरी और मेरी जन्मभूमि की पहचान है। इसी कड़ी में मैंने एक वाक्य कहा था, ‘‘मैं उस चम्पारण से आता हूँ, जहाँ चम्पारण सत्याग्रह के सूत्रधार और गांधी को महात्मा बनाने वाले इस कृषिप्रधान देश के एक महान किसान ‘राजकुमार शुक्ल ‘पैदा हुए।’’ हालाँकि उस ओरिएंटेसन के बाद वहां उपस्थित लोगों में से बस तीन ने बाद में मुझसे राजकुमार शुक्ल जी के बारे में पूछा था लेकिन जब वहां कांपते पैरो पर खड़े होकर कांपती आवाज में यह बोल रहा था उस समय सामने बैठे लोगों के चेहरे का भाव यह बता रहा था कि वे अनभिग्य हैं इस व्यक्ति और इस नाम से। यह अतिश्योक्ति वाली बात नहीं है कि आज भी बहुत से लोग नहीं जानते इस पुरोधा के बारे में जिन्होंने सबसे पहले उस कठोर अंग्रेजी कानून ‘तीन कठिया’ का विरोध किया था जिसके कारण किसानों को नील की खेती करनी पड़ती थी। यही नील की खेती पहला कारण थी ‘सोने की चिड़िया’ के पंख कुतरने का।  
 
भले ही सत्याग्रह का नाम आते ही हमारे मन में गांधी जी की छवि उभरती है लेकिन हमें पता होना चाहिए कि गांधी जी को चम्पारण बुलाकर किसानों की दुर्दशा से अवगत कराने और सत्याग्रह की बुनियाद रखने का काम ‘राजकुमार शुक्ला’ ने ही किया था। अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ में गांधी जी ने ‘शुक्ला जी’ के प्रयासों के बारे में लिखा है। इस तथ्य को भी शायद बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि रामचंद्र शुक्ला जी पहले पूर्ण देहाती और जमीनी किसान थे जिन्होंने किसानों के मुद्दे पर किसी कांग्रेस अधिवेसनमें बोला था। 

यह दुर्भाग्य है कि दशकों बाद भी आज जब मैं इस पुण्यात्मा के जन्मदिन पर यह लिख रहा हूँ तब भी इन्हें हमारी सरकार उस रूप में याद नहीं करती जिसके ये हकदार हैं। आज भी अपनों की उपेक्षा से जूझ रहा यह देशभक्त अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी अपनों की उपेक्षा का दंश झेलते हुए ही इस संसार से विदा हुआ। अंग्रेजों से लड़ते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले शुक्ल जी के घर में उनके अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे। बेलहा कोठी का निलहा (नील के ठेकेदार) अंग्रेज एसी एम्मन के दिए पैसों से उनका अंतिम संस्कार हुआ। 1929 में जब राजकुमार शुक्ल की मृत्यु हुई, तब एम्मन ने अपने नौकर को बुलाया और 300 रुपये देकर कहा, जाओ शुक्ल जी के परिवार वालों को दे आओ।  उनके पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं होंगे। नौकर ने कहा कि वह तो आपका दुश्मन था। एम्मन ने कहा कि तुम शुक्ल जी को नहीं समझोगे। वह चंपारण का अकेला मर्द था, जो मुझसे जिंदगी भर लड़ता रहा।
मातृभूमि को फिरंगियों से मुक्त कराने में सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले इस पुरोधा को जन्मदिन पर सलाम.

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