गुरुवार, 1 जून 2017

इतना भी 'खत्तम' नहीं है बिहार

पिछले 24 से 29 मई तक मास्टर्स सेकेंड सेमेस्टर की परीक्षा थी। लोधी रोड के सेंट जॉन कान्वेंट में जहां हमारा एग्जाम सेंटर था उसी में किसी और कॉलेज का भी सेंटर था। एक दिन एग्जाम देते हुए पीछे बैठे एक भाई साहब ने यूआरएल का फुलफॉर्म पूछा, मैंने बता दिया। एग्जाम दे के निकला और अपनी बाइक की ओर बढ़ा, तो देखा वही भाई साहब बाइक पे बैठकर बीड़ी का धुआं उड़ा रहे हैं। मैं बोला भैया उतरेंगे, बाइक ले जाना है, तो उनका जवाब था- सब्र रख भाई, इत्ती धूप में कित्थे जाना। मुझे जल्दी निकलना था इसलिए उनके इत्थे कित्थे को इग्नोर मारते हुए निकल गया। अगले दिन एग्जाम देने जाते हुए जवाहरलाल नेहरू मेट्रो स्टेशन के सामने वही भाई साहब हाथ हिलाते दिख गए। सेंटर पर पहुंचते पहुंचते उन्होंने अपनी सियासी बाहुबल वाली हैसियत और शैक्षिक औकात की पूरी रामकहानी सुना दी। उस दिन तो मुझे लगा था कि उन्हें केवल यूआरएल का फुलफॉर्म नहीं पता होगा लेकिन वे तो प्रौडीकल साइंस और संगीत वाले बिहार टॉपर्स से बड़े खिलाड़ी निकले। बीसीए की परीक्षा दे रहे भाई साहब को बीसीए का फुलफॉर्म भी पता नहीं था। मैंने पूछा लिखते क्या हैं कॉपी में, तो जवाब था, मेरे ताऊ का साला विधायक है, कौन फेल करेगा मैंनू। अपनी शेखी बघारते हुए ये भी बता दिया कि 6 महीने पहले ही जेल से निकले हैं, वो भी लड़की छेड़ने के जुर्म में गए थे, वो भी 24 घण्टे में बेल मिल गई। गौरतलब है कि भाई साहब पंजाब के पटियाला के रहने वाले थे।
2013 में दिल्ली में ग्रेजुएशन में एडमिशन हुआ। क्लास के कुछ ही दिन बीते थे, सर ने एक दिन ऐसे ही क, ख, ग, घ सुनाने को कहा। 20-25 बच्चों में से केवल 3 को पता था। ये छोड़िए, आजकल बड़े शहरों के बच्चों के लिए हिंदी कठिन हो गई है। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, बैंगलोर कहीं के राह चलते 10 कॉलेजिया बच्चों से पास्ट इम्परफेक्ट का सेंटेंस स्ट्रक्चर पूछिए, देखिए कितनों को आता है। ये भी छोड़िए, शाम के समय दिल्ली के सेंट्रल पार्क की तरफ जाइए, वहां आने वाले 10 युवक-युवतियों से 19 का पहाड़ा पूछिए, देखिए कितनों को आता है। ये सब छोड़िए, ऐसे ही लोगों से लोकसभा अध्यक्ष का नाम पूछिए... और हां, जवाब बताने वाले के राज्य का नाम भी लिखते जाइए। मैं दावे के साथ कह सकता हूं, दिल्ली आकर पढ़ने वाला एक एवरेज बिहारी इन सबके जवाब में बाकियों को पीछे छोड़ देगा। मैं मानता हूं कि बिहार में शिक्षा का स्तर बहुत गिरा है। इसके लिए आप सरकार को गरियाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन एक दो निकम्मे लोगों के कारण, भ्रष्ट अधिकारियों के कारण पूरे बिहार की प्रतिभा पर तो प्रश्न चिन्ह मत लगाइए। 60-70 प्रतिशत बिहारी हिस्सेदारी वाला मीडिया जिस तरह से चटकारे ले लेकर टीवी स्क्रीन पर पूरे बिहार और बिहारवासियों के अनपढ़ गंवार होने का रेखाचित्र बना रहा है, उसे चाहिए कि अन्य राज्यों के बोर्ड रिजल्ट का भी इसी तरह से पोस्टमार्टम करे। खुद को मल्लिका-ए-न्यूज़ समझने वाली एंकर मोहतरमा को चाहिए कि वे पंजाब, एमपी, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के स्कूलों में माइक और कैमरा लेकर जाएं और बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों का भी टेस्ट लें। सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट से बिहार को 'खत्तम' बताने वाले लोगों को ये भी बताना चाहिए कि झारखंड के 66 स्कूलों के सारे बच्चे बोर्ड एग्जाम में फेल हो गए हैं। सिर्फ बिहार के रिजल्ट से भारतीय शिक्षा जगत का चेहरा देखने वाले इन देश के कर्णधारों को चाहिए कि वे गूगल से हरियाणा के बोर्ड एग्जाम में चीटिंग की वो तस्वीर निकालकर फेसबुक पर अपलोड करें, जिसमे बाकायदा सीढ़ी लगाकर चीटिंग कराई जा रही थी। अरे भाइयों, फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ जरूरी है, प्रशासन की कुंभकर्णी नींद तोड़नी चाहिए, सुशासन का नकाब उतारना भी जरूरी है, लेकिन एक घुन के साथ पूरे गेंहू को पीसना कहां का न्याय है...

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