रविवार, 27 अगस्त 2017

महारैली: 'नीतीश गरियाओ-तेजस्वी बढ़ाओ'

बिहार ही नहीं देश की राजनीति में भी ये साबित हो चुका है कि रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ वोटों में तब्दील नहीं होती। सोशल मीडिया में आज 'भाजपा भगाओ-देश बचाओ' रैली की बातों से ज्यादा उसमे आई भीड़ की चर्चा है। कारण है, फोटोशॉप। ये फोटोशॉप वाली तस्वीर कोई अदना सा कार्यकर्ता शेयर करता, तो समझा जा सकता था, लालू यादव और शरद यादव जैसे बड़े नेताओं ने भी इसे असली भीड़ बता दिया। जैसा कि होना था, संख्याबल के मामले में आज की रैली मजाक बनकर रह गई और इसमें फोटोशॉप के बड़े-बड़े धुरंधर भी शामिल हो गए और उन्होंने तो भीड़ को हवा में भी उड़ा दिया। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि रैली में लोग नहीं थे, लगभग आधा गांधी मैदान भीड़ से भरा दिखाई दे रहा था। वैसे भी, कहा जाता है कि जेपी के बाद आजतक किसी भी नेता में वो ताकत नहीं दिखी, जो गांधी मैदान को लोगों से पाट दे, मोदी में भी नहीं।

खैर, बात करते हैं रैली की। मुझे ये रैली 'भाजपा भगाओ-देश बचाओ' से ज्यादा  'नीतीश गरियाओ-तेजस्वी बढ़ाओ' प्रतीत हुई। पूरा लालू कुनबा चाहे वो खुद लालू यादव हों, राबड़ी देवी, तेजस्वी या तेजप्रताप, सबने मोदी-भाजपा से ज्यादा नीतीश को आड़े हाथों लिया। राबड़ी देवी का ठेठ अंदाज में नीतीश पर बरसना तो बिहार में लंबे समय तक चर्चा के केंद्र में रहेगा। लालू यादव ने तो यहां तक कह दिया कि 'जब नीतीश बीमार पड़े, तो समझो वो कोई खतरनाक काम कर रहा है।' नीतीश पर सबसे ज्यादा बरसे शरद यादव। उन्होंने तो ललकार कर कह दिया कि, 'तुमने यहां 11 करोड़ जनता के साथ छल करके गठबंधन तोड़ा, मैं आज यहां एलान करता हूँ कि पूरे भारत मे 125 करोड़ जनता के साथ वाला महागठबंधन बनेगा।' ममता बनर्जी ने कहा, 'नीतीश ने लालू का साथ छोड़ा है, लालू ने नहीं। आने वाले समय में बिहार की जनता भाजपा-नीतीश को छोड़ देगी।' इस रैली को नेता पुत्रों का सम्मेलन भी कहा जा सकता है। तेज तेजस्वी के अलावा यहां दो दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के दो पूर्व मुख्यमंत्री बेटे भी उपस्थित थे, हेमंत सोरेन और अखिलेश यादव। दोनों ने इस मंच का उपयोग नीतीश को गरियाने और तेजस्वी के राजतिलक को समर्थन देने के साथ साथ अपने प्रदेश की जनता को संदेश देने के लिए भी किया। अखिलेश यादव ने तो चाचा के रूप में नीतीश पर चुटकी लेते हुए उन्हें डीएनए वाला चाचा करार दिया। वहीं हेमंत सोरेन ने इसी बहाने झारखंड के आदिवासियों के साथ ज्यादती का मुद्दा उछाल दिया।

हालांकि इस रैली ने 2019 के लिए भाजपा की नींव को कमजोर करने के प्रयासों का आधार तो तैयार कर ही दिया। पिछले कई दिनों से सोनिया और राहुल के इसमें न शामिल होने को लेकर रैली की सार्थकता पर सवाल उठाया जा रहा था। लेकिन गुलाम नबी आज़ाद ने उनकी अनुपस्थिति का कारण स्पष्ट किया और सोनिया गांधी का रिकॉर्डेड मैसेज सुनाया गया, तो वहीं अशोक चौधरी ने रैली के लिए राहुल गांधी का संदेश सुनाया। यानि अभी तो स्पष्ट है कि राजद की इस रैली को समर्थन या भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने को लेकर कांग्रेस में कोई संशय वाली स्थिति नहीं है। सोनिया गांधी ने उस संदेश के सहारे ही पुरजोर तरीके से मोदी सरकार पर हमला बोला। वहीं राहुल का लिखित संदेश उनके सजीव भाषण से ज्यादा प्रभावी लगा। शरद यादव का आज का भाषण लंबे समय तक याद रखा जाएगा। आज ये स्पष्ट दिखा कि अगर 2019 में मोदी सरकार के सामने संकट की घड़ी उत्पन्न होती है, तो उसके सूत्रधार शरद यादव ही होंगे। गुलाम नबी आज़ाद भी आज बहुत दिनों बाद आक्रामक तेवर में नज़र आए और खुलकर महागठबंधन की वकालत की। बिहारी अंदाज में भाषण की शुरुआत करना ममता बनर्जी का लालू प्रेम दिखा गया। ममता के लहजे से स्पष्ट झलक रहा था कि वे पूरी तरह से एनडीए से दो-दो हाथ करने के मूड में हैं। वो चाहे तारिक अनवर हों, अली अनवर या फिर देवेगौड़ा जी के संदेशवाहक, सबने खुले दिल से लालू का समर्थन और भाजपा का विरोध किया। लालू के आदेश पर तेजप्रताप यादव का शंख फूंकना भी दिलचस्प था। तेजप्रताप ने खुद के सर पर पगड़ी बांधते हुए अपने छोटे भाई तेजस्वी को इस सियासी महाभारत का कृष्ण बता दिया। वैसे, ये देखने वाली बात होगी कि क्या तेजप्रताप के सर पर केवल दिखावटी पगड़ी ही रहेगी या फिर वे भी कृष्ण की भूमिका में आ सकते हैं, क्योंकि पिछले दिनों उड़ती हुई खबर आई थी कि तेजस्वी और तेजप्रताप जिस बिहार यात्रा पर साथ निकले थे, उसपर पहले केवल तेजस्वी जाने वाले थे। लेकिन लालू के घर में ही इसे लेकर मतभेद हो गया और अंत में दोनों को भेजा गया। वैसे तो आज लालू यादव ने पूरा प्रयास किया कि तेजस्वी के राजतिलक को देशव्यापी सियासी मंजूरी मिल जाय और वो मिल भी गई लेकिन लालू के लिए आगे की राह आसान नहीं, न तो 'तेजप्रताप वाले घर' में और न ही 'मोदी वाले इंडिया' में...

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