रविवार, 13 अगस्त 2017

हादसों की राजनीति या राजनीति का हादसा

गोरखपुर की घटना अब पुरानी होने लगी है, इसलिए सरकार और भाजपा का बचाव दल सक्रिय हो रहा है, जो लाजिमी है। ऐसे तमाम प्रसंग सुनाए-बताए जा रहे हैं, जब कांग्रेस सरकार में ऐसी घटनाएं हुईं और मंत्रियों ने इस्तीफा नहीं दिया। हालांकि ऐसे प्रसंग सुनाने वाले भूल जा रहे हैं कि तब भाजपा ने उन मंत्रियों को दायित्व का बोध कराने और नैतिकता का पाठ पढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। हम भाजपा को पूर्णतः कठघरे में खड़ा नहीं कर रहे, ये हम समझ रहे हैं कि
'जाने लें चिलम जब चढ़े ले अंगारी'
लेकिन आप दिल पर हाथ रखकर बताइए, क्या आप प्रधानमंत्री मोदी जी से ये उम्मीद कर सकते थे कि वे ऐसी बड़ी घटना पर एक ट्वीट तक नहीं करेंगे? क्या आप सोच सकते थे कि खुद को लाल बहादुर शास्त्री का सियासी वारिस बताकर वोट मांगने वाले सिद्धार्थ नाथ सिंह खुद के और सरकार के बचाव में ऐसी गैरजिम्मेदाराना दलील देंगे? इस मामले में सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़ा करने वाला वर्तमान विपक्ष भी कौन सा दूध का धुला है। ये दलील देकर और सोचकर कि आपातकाल के बाद भी इंदिरा सत्ता में आई थीं, 2019 में मोदी को मात देने की रणनीति बना रही कांग्रेस शायद बेलछी कांड के समय इंदिरा गांधी का बिहार दौरा भूल चुकी है। अहमद पटेल की जीत के समय सुना था कि राहुल गांधी को वायरल फीवर है, शायद अब तक ठीक नहीं हुए। राहुल गांधी इंदिरा की विरासत को वैसे ही आगे बढ़ा रहे हैं, जैसे सिद्धार्थनाथ सिंह लालबहादुर शास्त्री की। सुकुमार राहुल जी पिछले कई दिनों से अपने ऑफिस के ट्विटर हैंडल के सहारे ही गोरखपुर घटना में सरकार को घेर रहे हैं। शायद राहुल गांधी को ये मालूम भी नहीं होगा- 'आपातकाल के बाद इंदिरा सियासी और कानूनी, हर रूप से विपक्ष के निशाने थीं। उसी दौरान 27 मई 1977 को बिहार में भागलपुर के बेलछी गांव में दबंगों ने कई दलितों के फूंक दिए, इस घटना में दर्जन भर से ज्यादा दलित जिंदा जला कर मार दिए गए थे। इस घटना की खबर सुनते ही इंदिरा गांधी बेलछी के लिए रवाना हो गईं। गांव में गाड़ी नहीं जा सकती थी, इसलिए हाथी की यात्रा करनी पड़ी। वहां भारी बारिश हुई थी और कीचड़ था, जब हाथी के जाने में भी मुश्किल हुई, तो इंदिरा को ट्रैक्टर की यात्रा करनी पड़ी, जब ट्रैक्टर भी नहीं जा सका, तो इंदिरा कीचड़ वाली सड़क पर पैदल चलकर पीड़ितों के घर पहुंचीं।' कहा जाता है कि इंदिरा की बेलछी यात्रा ने ही जनता पार्टी सरकार की उल्टी गिनती शुरू कर दी थी। आज की कांग्रेस को ये किस्सा कौन बताए। ख़ैर, गोरखपुर जैसी घटनाओं के समय कांग्रेस के कुकृत्य गिना रहे भाजपाई बंधुओं के लिए इंदिरा का एक और किस्सा- आज से तक़रीबन छत्तीस साल पहले अचानक अंधेरा हो जाने की वजह से क़ुतुबमीनार की सबसे ऊपरी मंज़िल पर भगदड़ मच गई थी, जिसमें करीब 45 लोग कुचल कर और दम घुटने की वजह से मर गए थे। मरने वालों में ज़्यादातर स्कूली बच्चे थे। इंदिरा गांधी घटनास्थल पर पहुंचीं। ज़मीन पर एक लाइन से रखी बच्चों की लाशें, कपड़े से ढकी हुई थीं। हवा की वजह से कई के चेहरे से कपड़ा हट गया, जिससे उनका कुचला हुआ चेहरा नज़र आ गया। वो मंजर देख इंदिरा की आंखों से आंसू टपक कर दामन में आ गिरे और उन के मुंह से बरजस्ता निकल गया-
'जिन को पामाल किया बाद-ए-सबा तूने आज,
यही गुंचे कभी खिलते तो गुलिस्तां बनते...'

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