सोमवार, 28 अप्रैल 2014

गांधी के सपनो की हकीकत-


10 सितम्बर 1931 को ‘यंग इंडिया’ में महात्मा गांधी का एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ था जिसमे उन्होंने कहा था कि ‘’मै एक ऐसे हिन्दुस्तान के लिए कोशिश करूंगा जहाँ का गरीब से गरीब आदमी भी यह महसूस करे कि यह देश उसका है और इसकी तकदीर को बनाने और संवारने में उसकी भी महत्वपूर्ण भूमिका और भागीदारी रही है| वह हिन्दुस्तान ऐसा हिन्दुस्तान होगा जहाँ कोइ बड़ा होगा ना कोइ छोटा जहाँ सब जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लोग एकता के सूत्र में बंधे सौहार्दपूर्ण सुख-शांति से रहेंगे|’’अब इसे हुकूमत की बेवफाई कहें या जनता में कर्तव्यपालन की कमी कि भारत आज अपने राष्ट्रपिता के इन सपनो से कोसो दूर है| आजादी के 67 साल बीत चुके है लेकिन हिन्दुस्तान का आम आदमी आज भी वैसी सरकार का सपना लिए बैठा है जो आंकड़ो में नहीं जमीनी स्तर पर हुए विकास की बात करे| ऐसी बात नहीं है कि बीते 67 सालो में भारत में विकास नहीं हुआ है, राष्ट्रीय राजमार्गो की लम्बाई में बढ़ोतरी हुई है, बिजली उत्पादन की क्षमता भी बढी है, उद्योगों का भी विकास हुआ है| लेकिन विकास की किरण अब भी वहां नहीं पहुँच पाई है जहाँ इसकी दरकार थी| चमचमाते राष्ट्रिय राजमार्ग से 10 किमी निचे उतर कर देखने पर पता चलता है कि भारत आज भी वहीँ खड़ा है जहाँ 66 साल पहले एक बुढा फकीर महात्मा गांधी इसे छोड़कर गया था| हमारी सरकारे किस विकास की बात करती है और वो विकास किस काम का कि दिल्ली और मुम्बई में कामगार का जीवन बिता रहे एक मजदुर के गाँव की सड़के आज भी जर्जर अवस्था में अपने हाल पर रो रही है| बिजली के तार और बल्ब के इन्तजार में कई दसक  से खड़े बिजली के खम्भे जो आंकड़ो में खुद पर बल्ब लटकाए प्रकाशमान हो रहे है क्या इस बात के गवाह नहीं है कि विकास केवल कागजो में दिखता है| यह मनगढ़ंत कहानी नहीं वरन सच है| अप्रैल 2003 में जम्मू-कश्मीर में एक बारूदी सुरंग विष्फोट ने कई सैनिको की जान ले ली थी| उन्ही शहीदों में एक थे ‘शहीद नंदकेश्वर मिश्र’| जिनकी जन्मस्थली है पश्चिम चंपारण (बिहार) का एक गाँव ‘जयसिंहपुर, मिश्रटोला’| अगर हम राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की वेबसाईट पर इस गाँव के बारे में पड़ताल करें तो वहां इसे पुर्णतः विद्युतीकृत दिखाया गया है| जबकि सच ये है कि यहाँ 80 के दसक में ही बिजली के खम्भे लगे थे जो आज भी तार और बल्ब की राह देख रहे हैं| लानत है इस लोकतंत्र के रहनुमाओं पर कि आज दिल्ली में सड़क के किनारे लगे बड़े-बड़े होर्डिंग ‘दिल्ली को किरोसिन मुक्त करने का सन्देश फैला रहे है’ तो वही गाँवो के इस भारत में कई गाँव ऐसे भी है जो किरोसिन की रोशनी में ही भारत के कर्णधार को भारत की वास्तविकता से रूबरू करा रहे हैं| बिहार का ही एक गाँव है 'कमलपुर, ब्रह्मोत्तर' जहाँ दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद भी ग्रामीणों की एक अदद पुल की दरकार पुरी नहीं हो पाई और अंत में स्थानीय लोगो ने चन्दा इकठ्ठा कर लकड़ी के पुल का निर्माण किया और पुल के दोनों किनारों पर लिख कर टांग दिया कि ‘पुल पर जनप्रतिनिधियों का प्रवेश निषेध है|’ सोंचने वाली बात है कि यह घटना उन नेताओ की कर्मस्थली की है जो जयप्रकाश और जो लोहिया जी की समाजवादी विचारधारा से निकले हैं| शर्म आती है कि लोहिया जी की विरासत अपनाने की बात करने वाले नेता उस लोहिया को भूल गए हैं जिन्होंने जन सहयोग से उत्तर प्रदेश में ‘पनियारी बांध’ का निर्माण कराया था और उस पर लिख दिया था कि ‘ज़िंदा कौमे पांच साल तक इन्तजार नहीं किया करती|’
हर आम चुनाव में जनता एक उम्मीद के साथ बटन दबाती है कि शायद अगली सरकार उसके दुःख-दर्द को समझेगी| लेकिन अभी तो चुनाव हो ही रहे है और हमारे माननीय अपनी बदजुबानी से अपनी विचारधारा सार्वजानिक करने में लगे हैं| महान क्रांतिकारी ‘असफाक उल्लाह खान’ ने फांसी से पहले एक कविता लिखी थी जिसमे उन्होंने कहा था कि,
‘’बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं मै आऊंगा मै आऊंगा,
आकर मै भारत माता तुझको आजाद कराऊंगा,
जी करता है मै भी कह दूँ पर मजहब से बांध जाता हूँ,
मै मुसलमान हूँ पुनर्जनम की बात नहीं कर पाता हूँ|’’
भारत की आजादी के लिए पुनर्जनम का सपना लिए फांसी पे चढ़ जाने वाले ऐसे क्रांतिकारियों की बिरादरी को हिन्दुस्तान छोड़ देने की बात करने वाले माननीय को ये हक़ किसने दिया कि वे ऐसे तुगलकी फरमान सूना सकें| लोकतंत्र में सबको हक़ है अपनी स्वेक्षा से अपने मताधिकार का प्रयोग करने का| अगर इस लोकतंत्र के मंदिर में ऐसे ही कुंठित मानसिकता वाले लोग जाने लगे तो फिर क्या अंतर रह जाएगा इस धर्मनिरपेक्ष भारत की नीव रखने और उस नापाक ‘पाक’ की नीव रखने वाली विचारधारा में? अफ़सोस कि ऐसे लोग भी इस लोकतंत्र के निति नियंताओ की कतारमें खड़े हैं जो हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के बीच दीवार खड़ी करने वाले बयानों के बाद भी सीना तान के यह कह रहे हैं कि मैंने कुछ गलत नहीं कहा| चुनाव के कई चरण अभी बाकी है ऐसे में लोकतंत्र की जीत तभी होगी जब जनता ऐसे लोगो के लिए संसद के दरवाजे बंद कर दे|
 

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