शनिवार, 18 जून 2016

वर्तमान सियासत के बेजान राही को जन्मदिन मुबारक

विरासत में मिली हर चीज हर किसी को अच्छी नहीं लगती खासकर राजनीति, वह भी तब, जब परिवार मूल रूप से सियासी हो और नई पीढी आधुनिकता की गोद में चिपक कर बैठी हो। लेकिन राजनीति से दूराव की इस व्यक्तिगत मज़बूरी के बाद भी अपने परिवार और पार्टी के लिए कोई निजी नापसंदगी को गौण कर दे और सियासत की बारीकियां सीखते हुए राजनेता बनने की राह पर चलने को तैयार हो जाए तो इसकी सराहना की जानी चाहिए। कुछ कड़वे अनुभव या प्रशंसक और सियासी नजरिए से शायद हमें कांग्रेस मुक्त भारत का नारा सुखद लगे लेकिन एक भारतीय के नाते इस सबसे पुरानी पार्टी को गर्त की तरफ जाते देखना दुखद लगता है। राजनीतिक और कूटनीतिक चालबाजी से दूर सीधे साधे राहुल गांधी पर बीते कुछ सालों में जिस तरह से सियासी रंग चढ़ा है वह इस भारतीय लोकतंत्र के लिए सुखद है जहाँ विपक्ष की एक महती भूमिका होती है। इस सच को भले ही इस दुर्भाग्य के साथ स्वीकार करना पड़े कि राहुल गांधी परिवारवाद की देन हैं लेकिन स्वीकार तो करना पड़ेगा। क्योंकि इस हमाम में सब नंगे हैं। सियासत बदलने का दावा करने वाली भाजपा भी इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेर नहीं सकती क्योंकि इस मामले में सबसे ताजा उदाहरण धूमल जी के बेटे अनुराग ठाकुर हैं। राहुल गाँधी भले ही चमत्कारिक नेतृत्व के धनी नहीं हैं लेकिन राहुल गांधी राजीव गांधी के बेटे हैं और वर्तमान सियासत का सबसे बड़ा सच यही है। कांग्रेस परिवार की कुछ अपनी मजबूरियां भी है जिसके कारण वह 'राहुल-प्रियंका' से आगे सोच ही नहीं सकते। क्योंकि राजीव गांधी के बाद कांग्रेस ने एक गैर कांग्रेसी नरसिम्हा राव को आगे किया था और परिणाम कांग्रेस परिवार के हित में नहीं रहा।
बहरहाल, राहुल गांधी का आज जन्मदिन है। सोशल मीडिया जिस मजाक के अंदाज में राहुल गांधी को याद करता है, वह सलसिला आज भी जारी है। राहुल गांधी का व्यक्तित्व इस मामले में मुझे पसंद है कि उनके पास अपनी आलोचना और मजाक सहने की क्षमता है। वर्तमान राजनीति में जबकि बड़े तो बड़े छुटभैये नेता भी अपने विरोध के फेसबुक पोस्ट या ट्वीट पर सामने वाले को कानूनी कठघरे में खड़ा कर देते हैं उस समय तमाम मजाक के मामले में सांता-बांता से तुलना को भी राहुल गांधी की मौन स्वीकृति इस लोकतंत्र में सुखद लगती है। परंतु राहुल गांधी को अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। खासकर सियासी मर्यादाएं। जिस तरह ने उन्होंने एक विधेयक की कॉपी फाड़ी या जिस तरह से भरी संसद में ललित मोदी मुद्दे पर घिरी सुषमा स्वराज के अपनत्व को यह कहकर ठेस पहुंचाना है कि 'कल सुषमा आंटी आईं और मुझसे कहा कि राहुल बेटे मुझसे नाराज क्यों हो'...अगर राजनीति में खुद को स्थापित करना है तो राहुल गांधी को इस ओछी सियासत से पार पाना होगा...बहरहाल, उन्हें जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई...

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