बुधवार, 31 अगस्त 2016

अमृता प्रीतम: जो अमर हैं शब्दों में

'उम्र की एक रात थी, 
अरमान रह गए जागते,
किस्मत को निंद आ गई...।'
अमृता के अरमान साहिर और इमरोज की लेखनी में अमर हो गए और उनकी किस्मत का पाठ पूरी दुनिया पिंजर के पन्नों में कर रही है...।
साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ, पद्मश्री और पद्म भुषण से सम्मानित एक जिंदादिल लेखिका अमृता प्रीतम का आज जन्मदिन है। अमृता प्रीतम ने प्रेम, रुहानियत के साथ-साथ विभाजन की त्रासदी, महिला उत्पीङन और समाज के अन्य अनछुए पहलुओ को अपनी रचनाओ में स्थान दिया ।
'साहित्य अकादमी का पुरस्कार पाने पहली महिला- अमृता प्रीतम' इसी रूप में अपना पहली बार 'अमृता प्रीतम' के नाम से परिचय हुआ था, विधासागर-सामान्य ज्ञान का रट्टा मारते हुए। जब कहानियों-कविताओं में रूचि जगी और अमृता प्रीतम को पढ़ा और जाना, तब पहली बार पता चला कि अमृता प्रीतम एक नाम नहीं खुद में एक दुनिया हैं...एक ऐसी दुनिया जिसमें शब्दों का संसार तो समाहित है ही, दो ऐसी शख्सियतें भी हैं, जिनके अक्स में उनसे ज्यादा अमृता शामिल हैं। अमृता ताउम्र साहिर में खुद को ढूंढती रहीं, पर पा ना सकीं और इमरोज, अमृता के बाद भी अमृता में जी रहे हैं। इमरोज ने लिखा भी है-

'उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं,
वो अक्सर मिलती है,
कभी तारों की छांव में,
कभी बादलों की छांव में,
कभी किरणों की रोशनी में,
कभी ख्यालों के उजालों में...'
इमरोज से पहले अमृता का सुकून साहिर ही रहे, तभी तो शायद साहिर ने लिखा भी है-

'तेरे तड़प से न तड़पा था मेरा दिल,लेकिन
तेरे सुकून से बेचैन हो गया हूँ मैं।'

साहिर की बेचैनी को मिले सुधा मल्होत्रा के सहारे ने अमृता को किनारे कर दिया फिर अमृता को कंधा मिला इमरोज का। इमरोज एक ऐसा प्रेमी जिन्होंने अपनी प्रेमिका के पूर्व प्रेमी को भी अपनी पंक्तियों में शामिल किया, अदब के साथ। इसकी नजीर है ये पंक्तियां-

'वो नज़्म से बेहतर नज़्म तक पहुँच गया,
वो कविता से बेहतर कविता तक पहुँच गयी,
पर जिंदगी तक नहीं पहुंचे,
अगर जिंदगी तक पहुँचते,
तो साहिर की जिंदगी नज़्म बन जाती,
अमृता की जिंदगी कविता बन जाती...।'

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