रविवार, 22 मई 2016

मेरी वेदना के चित्र पर किसी ने आंसू भी बहाए होते

मुझे लगता है प्रधानमंत्री जी के आज के मन की बात का सार इस एक वाक्य में ही समाहित हो सकता है जो उन्होंने एक कविता की कुछ पंक्तियों के बीच कही कि ‘काश मेरी वेदना के चित्र पर किसी ने आंसू भी बहाए होते।' हममें से अधिकाँश लोग आजीवन प्रकृति का दोहन ही करते रहते हैं। कभी उसकी वेदना नहीं समझ पाते और उसी वेदना ना समझ पाने का कुफल भीषण गर्मी, पानी की किल्लत और जंगलों की आग के रूप में हमारे सामने आता है। सूखे को लेकर प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री जी की अलग अलग बैठक प्रशंसनीय तो है ही साथ ही मोदी जी के इस वाक्य को हमें आत्मसात करने की जरूरत है कि 'पानी परमात्मा का प्रसाद है।' पानी की बर्बादी के बाद हममें किसी ख़ास को खोने की वेदना प्रस्फुटित होनी चाहिए। मोदी जी के इस कथन के अनुभव से तो हम हर दिन गुजरते हैं कि 'कितने भी थक कर आए हों मुंह पर पानी छिड़कते हैं तो कितना सुकून मिलता है...' जल की अहमियत को समझने के लिए हमें मोदी जी द्वारा कहे गए जल से संबंधित इन तीन बातों को अपने जीवन में आत्मसात करने की जरूरत है...'जल संचय, जल संरक्षण, जल सिंचन'...महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व आंध्र प्रदेश द्वारा पानी की बचत के लिए चलाए जा रहे विभिन्न योजनाओं के बारे में प्रधानमंत्री से सुन कर तथा विभिन्न राज्यों द्वारा डीप इरिगेशन की व्यवस्था के बारे में जान कर सरकारों के लिए मन में एक सकारात्मक सोच का संचार हुआ।
JAM (जनधन, आधार और मोबाइल) में तालमेल बैठाते हुए समाज को कैशलेस सोसाइटी की तरफ बढ़ाना सरकार का एक सार्थक प्रयास है। मोदी जी का यह कहना सही है कि इससे हम आधुनिक भारत और ट्रांसपैरेंट भारत की तरफ कदम बढ़ाएंगे।
ऐसा हर बार होता है कि किसी भी खेल में हार के बाद हमारा समाज खिलाड़ी पर कीचड़ उछालना शुरू कर देता है। हम मुश्किल समय में अपनी संवेदना को उसके साथ नहीं रख पाते। मोदी जी के इस विचार का सारथी हमें भी बनना चाहिए कि 'रियो ओलंपिक के लिए जाने वाले खिलाड़ियों का अपने अपने प्रयासों से प्रोत्साहित करें।' बदनाम सियासी कुनबों से अगर किसी नेता या मंत्री के अच्छे कामों की खबर मिलती है तो मन खुश हो जाता है यह सोचकर कि हमारी राजनीति उतनी बुरी भी नहीं है। एक राज्य के मुख्यमंत्री उम्मीदवार होने के मानसिक दबाव के बीच खेल मंत्री सर्वानंद सोनोवाल का ओलंपिक के लिए तैयारी कर रहे खिलाड़ियों के बीच जाना उनकी समस्याएं सुनना, उन्हें दूर करने की दिशा में काम करना और प्रोत्साहित करना सच में प्रशंसनीय है।
हाल के दिनों में आए दिन युवाओं की आत्महत्या की ख़बरें आ रही है। इसमें ज्यादातर वैसे बच्चे हैं जिन पर अभिभावकों का दबाव था पढ़ाई या परिणाम को लेकर। मन की बात में मोदी जी द्वारा कही गई गौरव पटेल की कहानी सभी के लिए सीख है कि सफलता का शीर्ष छूने के लिए बच्चों पर दबाव कहीं उनके भविष्य को अंधकारमय ना कर दे। 89.33 प्रतिशत नंबर प्राप्त किए हुए लड़के को शाबासी देने की बजाय उससे यह कहना कि अगर 4 नंबर और आ जाते तो 90% हो जाता, एक सफलता की ओर अग्रसर बच्चे को हतोत्साहित करना, उसका पाँव खीचना है। प्रधानमंत्री जी ने कितनी सही बात कही कि 'जितनी सफलता मिली है उसे गुनगुनाओ उसी में से नई सफलता निकलेगी।' मोदी जी ने एक कविता के माध्यम से इस परिस्थिति का मर्म समझाया...
'जिंदगी के कैनवास पर मैंने वेदना का चित्र बनाया
और जब उसकी प्रदर्शनी हुई तो लोग आए
और किसी ने कहा नीला की जगह पिला रंग होना चाहिए था,
यह लाइन मोटी यह पतली होनी चाहिए थी,
काश मेरी वेदना के चित्र पर किसी ने आंसू भी बहाए होते...'

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